Title :तुलसी और शालिग्राम विवाह की पौराणिक कथा,जिसे 99% हिन्दू नहीं जानते ! |
Tulsi & Shaligram Story Language : Hindi
Source :ShivPuran
Tulsi Vivah Pauranik Katha In Hindi
एक बार शिव ने अपने तेज को समुद्र में फैंक दिया था। उससे एक महातेजस्वी बालक ने जन्म लिया। यह बालक आगे चलकर जालंधर के नाम से पराक्रमी दैत्य राजा बना। इसकी राजधानी का नाम जालंधर नगरी था।
दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृंदा का विवाह जालंधर से हुआ। जालंधर महाराक्षस था। अपनी सत्ता के मद में चूर उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया। वहाँ से पराजित होकर वह देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पर गया।
भगवान देवाधिदेव शिव का ही रूप धर कर माता पार्वती के समीप गया, परंतु माँ ने अपने योगबल से उसे तुरंत पहचान लिया तथा वहाँ से अंतर्ध्यान हो गईं। देवी पार्वती ने क्रुद्ध होकर सारा वृतांत भगवान विष्णु को सुनाया। जालंधर की पत्नी वृंदा अत्यन्त पतिव्रता स्त्री थी। उसी के पतिव्रत धर्म की शक्ति से जालंधर न तो मारा जाता था और न ही पराजित होता था। इसीलिए जालंधर का नाश करने के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना बहुत आवश्यक था।
इसी कारण भगवान विष्णु ऋषि का वेश धारण कर वन में जा पहुँचे, जहाँ वृंदा अकेली भ्रमण कर रही थीं। भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें देखकर वृंदा भयभीत हो गईं। ऋषि ने वृंदा के सामने पल में दोनों को भस्म कर दिया। उनकी शक्ति देखकर वृंदा ने कैलाश पर्वत पर महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जालंधर के बारे में पूछा। ऋषि ने अपने माया जाल से दो वानर प्रकट किए। एक वानर के हाथ में जालंधर का सिर था तथा दूसरे के हाथ में धड़। अपने पति की यह दशा देखकर वृंदा मूर्छित हो कर गिर पड़ीं। होश में आने पर उन्होंने ऋषि रूपी भगवान से विनती की कि वह उसके पति को जीवित करें।
भगवान ने अपनी माया से पुन: जालंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया, परंतु स्वयं भी वह उसी शरीर में प्रवेश कर गए। वृंदा को इस छल का तनिक भी आभास न हुआ। जालंधर बने भगवान के साथ वृंदा पतिव्रता का व्यवहार करने लगी, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। ऐसा होते ही वृंदा का पति जालंधर युद्ध में हार गया।
इस सारी लीला का जब वृंदा को पता चला, तो उसने क्रुद्ध होकर भगवान विष्णु को ह्रदयहीन शिला होने का श्राप दे दिया। अपने भक्त के श्राप को भगवान विष्णु ने स्वीकार किया और शालिग्राम पत्थर बन गये। सृष्टि के पालनकर्ता के पत्थर बन जाने से ब्रम्हांड में असंतुलन की स्थिति हो गई। यह देखकर सभी देवी देवताओ ने वृंदा से प्रार्थना की वह भगवान् विष्णु को श्राप मुक्त कर दे।
वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर स्वयं आत्मदाह कर लिया। जहाँ वृंदा भस्म हुईं, वहाँ तुलसी का पौधा उगा।
भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा: हे वृंदा। तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। तब से हर साल कार्तिक महीने के देव-उठावनी एकादशी का दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है। जो मनुष्य भी मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा।
उसी दैत्य जालंधर की यह भूमि जलंधर नाम से विख्यात है। सती वृंदा का मंदिर मोहल्ला कोट किशनचंद में स्थित है। कहते हैं कि इस स्थान पर एक प्राचीन गुफा भी थी, जो सीधी हरिद्वार तक जाती थी। सच्चे मन से 40 दिन तक सती वृंदा देवी के मंदिर में पूजा करने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।
जिस घर में तुलसी होती हैं, वहाँ यम के दूत भी असमय नहीं जा सकते। मृत्यु के समय जिसके प्राण मंजरी रहित तुलसी और गंगा जल मुख में रखकर निकल जाते हैं, वह पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम को प्राप्त होता है। जो मनुष्य तुलसी व आंवलों की छाया में अपने पितरों का श्राद्ध करता है, उसके पितर मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं।
Tulsi Vivah Pauranik Katha In English
Once Prabhu Shiva threw his light into the sea. A great boy was born to him. This boy later became the mighty Ashur Raja in the name of Jalandhar. The name of its capital was Jalandhar city.
Vrinda, the daughter of Daityaraja Kalnemi, was married to Jalandhar. Jalandhar was Maharaksas. Due to his power, he fought with the desire to get Mata Lakshmi, but due to originating from the sea, Mata Lakshmi accepted him as her brother. Defeated from there, he went to Mount Kailash, craving to find Prabhudess Parvati.
Bhagwan Devadhdev took the form of Shiva and went near to Mata Parvati, but maa immediately recognized him with her yoga force and disappeared from there. Mata Parvati got angry and narrated the entire episode to Bhagwan Vishnu. Jalandhar’s wife Vrinda was a very devoted woman. Jalandhar was neither killed nor defeated by the power of his husband’s religion. That is why it was very important to dissolve Vrinda’s patibrata in order to destroy Jalandhar.
That is why Bhagwan Vishnu disguised as a sadhu and went to the forest, where Vrinda was traveling alone. Bhagwan was also accompanied by two elusive demons, upon which Vrinda became frightened. The sadhu devoured both of them in front of Vrinda. Seeing his power, Vrinda asked about her husband Jalandhar, who was at war with Mahadev on Mount Kailash.
Prabhu again connected Jalandhar’s head with his illusion, but he himself entered the same body. Vrinda had no idea of this trick. Vrinda began to behave with devotion to the Prabhu of Jalandhar, which disturbed her sattva. As soon as this happened, Vrinda’s husband lost in the Jalandhar war.
When Vrinda came to know about all this Leela, he got angry and cursed Bhagwan Vishnu to be a heartless rock. Vishnu accepted the curse of his devotee and Shaligram became stone. The universe became imbalanced as the follower of the universe became stone. Seeing this, all the Bhagwan and Mata prayed to Vrinda to curse Bhagwan Vishnu. Vrinda cursed Vishnu and committed self-immolation. Where Vrinda was consumed, the basil plant grew. Bhagwan Vishnu said to Vrinda: O Vrinda. You have loved me more than Lakshmi because of your Sattva. Now you will always be with me as Tulsi. Since then, every year the day of Kartik month Dev-Uthavani Ekadashi is celebrated as Tulsi Vivah. Anyone who marries Tulsi with my Shaligram form will get immense fame in this world and the hereafter.
This land of the same Raakshas Jalandhar is known as Jalandhar. The temple of Sati Vrinda is located in Mohalla Kot Kishanchand. It is said that there was an ancient cave at this place, which went straight to Haridwar. Worshiping the temple of Sati Vrinda Devi for 40 days with true heart fulfills all desires.
In the house where Tulsi is there, Yama’s messengers also cannot go untimely. At the time of death, whose life is taken out by keeping basil and Ganges in the mouth without water, he gets free from sins and gets to Vaikuntha Dham. A person who performs his ancestors’ shraddha in the shadow of Tulsi and Amla, gets moksha.